पहले जब होली आती थी
खूब मस्तियां होती थी
जमीन भी गीली
आसमान भी गीला
होता सारा जहां रंगीला
दिन चार पहले होली के
सजते थे बाजार रंगों के
बच्चे पिचकारी चुनते थे
फिर भर रंग गुब्बारे फैंकते थे
रूकने पर राहगीर के
घर में छिपते फिरते थे
आता जैसे दिन फाग का
होता आसमान रंगों का
ढोल नगाडे बजते थे
हुर्रारे नाचते फिरते थे
घर-घर जाकर
पुआ-पकौडे खाते थे
कहीं पर मिलती बूंटी भोले की
मस्त होकर पीते थे
अब होली कहां रही रंगों की
दुश्मन हो गए भाई-भाई
रह गई होली खून की
लगा दिया गर रंग किसी को
गाली सुनने को मिलती है
अब गले लगाने की जगह
बंदूक गले पड जाती है
होली मनाने की जगह
अब गोली चलाई जाती है
अब कहां गया वो दौर होली का
कहां खो गए रंग गुलाल
कहां से आ गई शराब बीच में
रंग में भंग डालने को
मत भूलो तुम हो भारतवंशी
दी थी होली श्रीकृष्ण ने
खेली थी वृंदावन में
कहो तुम उस देश के वासी हो
होली आई है होली मनाओ
रंग गुलाल सभी को लगाओ
सब को अपने गले लगाओ